इस पाठ्यक्रम में सामान्य हिंदी और प्रयोजनमूलक हिंदी दोनों को ही सम्मिलितकिया गया है। गद्य और पद्य के साथ-साथ व्याकरण से विद्यार्थियों की भाषा काशुद्धीकरण भी होगा और प्रयोजनमूलक हिंदी पढ़ कर वे अपने विभिन्न कार्यक्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। सरकारी कार्यालय और शिक्षण आदिक्षेत्रों में स्वयं की योग्यता सिद्ध कर सकते हैं। इस दृष्टि से यहपाठ्यक्रम विद्यार्थियों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।
COURSE OUTCOME:
AHIN 200 A |
|
पाठ्यक्रम पूर्ण करने के पश्चात विद्यार्थी इनमें सक्षम होगाविभिन्नविद्वानोंकीरचनाओंकोपढ़नेसेशब्दभंडारविस्तृतहोगा CO.45 गद्य और पद्य के द्वारा भावों के प्रकटीकरणकीविभिन्न शैलियों से परिचित होगा, जिससे वह अपने भावों की अभिव्यक्ति विभिन्न डिजाइनर पैटर्न के माध्यम से बेहतर तरीके से कर सकेगा CO.46 विभिन्न भावों की समझ विद्यार्थी में उत्पन्न होगी जो उसके कार्यक्षेत्र में रंगसंयोजन में मददगार होगी CO.47 साहित्य के माध्यम से अतीत और वर्तमान समाज की सांस्कृतिक, राजनीतिक,आर्थिक,सामाजिक तथा धार्मिक स्थितियों का मूल्यांकन कर समाज को निकटता से देख और समझ पाएगा CO.48 व्याकरण के सामान्य नियमों का ज्ञान होने से भाषा में शुद्धता आएगी CO.49 संक्षेपण व पल्लवन के माध्यम से भावों के प्रस्तुतीकरण का तरीका सीखेगा CO.50 सरकारी वगैर सरकारी कार्यालयों के विभिन्न पत्राचारों की भाषा प्रयोग में निपुण होगा |
Approach in teaching: प्रभावात्मकव्याख्यानविधि, प्रत्यक्षउदाहरणोंकेमाध्यमसेशिक्षण, परिचर्चा
Learning activities for the students: स्वमूल्यांकनअसाइनमेंट, प्रभावात्मकप्रश्न, विषयअनुसारलक्ष्यदेना, प्रस्तुतीकरण |
Class test, Semester end examinations, Quiz, Solving problems in tutorials, Assignments |
पद्य
सुभद्रा कुमारी चौहान : वीरों का कैसा हो बसंत
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ : (क) जागो फिर एक बार (ख) तोड़ती पत्थर
हरिवंशराय बच्चन : (क) पथ की पहचान (ख) लहरों का निमत्रंण (केवल छः भाग)
केदारनाथ अग्रवाल : (क) यह धरती है उस किसान की
गद्य
महादेवी वर्मा : सिस्तर के वास्ते
हरिशंकर परसाई : वैष्णव की फिसलन
ऊषाप्रिय वदा : वापसी
शब्द निर्माण एवं शब्द सम्पदा
प्रत्यय व उपसर्ग
संधि : (केवल स्वर- दीर्घ, गुण, यण, वृद्धि, अयादि
समास : (अव्ययीभाव, द्वंद्व, द्विगु, कर्मधारय, तत्पुरूष, बहुब्रीहि)
मुहावरे व लोकोक्त्तियाँ (राजस्थानी)
विलोम, पर्यायवाची
व्याकरणिक कोटियाँ
संज्ञा : (व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, भाववाचक)
सर्वनाम : (पुरूषवाचक, अनिश्चयवाचक, निश्चयवाचक, प्रश्नवाचक, सम्बन्धबोधक, निजवाचक)
विशेषण : (गुणवाचक, संख्यावाचक, परिमाणवाचक, सार्वनामिकविशेषण)
क्रिया : कर्मकेअनुसार (सकर्मक, अकर्मक),
क्रियाविशेषण : (कालवाचक, स्थानवाचक, परिमाणवाचक, रीतिवाचक
प्रयोजनमूलक हिन्दी : प्रयोग के क्षेत्र
संक्षेपण : महत्व, प्रक्रिया, विशेषताएँ एवं सक्षेपक के गुण
पल्लवन : महत्व, प्रक्रिया, एवंभाषा
प्रतिवेदन (रिपोर्ट) : परिभाषा, प्रारूप, प्रक्रिया एवंप्र शासनिक पत्राचार
1. काव्यधारा - सं. डाॅ. राजकुमारसिंहपरमार, इंडियाबुकहाऊस, जयपुर
2. पद्यसंचयन - डाॅ. मकरन्दभट्ट साक्षीपब्लिशिंगहाऊस, जयपुर, संस्करण 2008
3. गद्यप्रभा - सं. डाॅ. राजेशअनुपम, युनिकबुकहाऊस, बीकानेर, संस्करण 2012
4. गद्य-पद्यसंचयन, डाॅ. अशोकगुप्ताएवंडाॅ. रजनीशभारद्वाज, राजस्थानप्रकाशन \जयपुर, प्रथमसंस्करण, 2004
5. हिन्दीभाषा, व्याकरणऔररचना - डाॅ. अर्जुनतिवारी, विश्वविद्यालयप्रकाशन , वाराणसी, संस्करण 2010
6. परिष्कृतहिन्दीव्याकरण - बदरीनाथकपूर, प्रभातप्रकाशन, दिल्ली, संस्करण 2014
7. संक्षेपणऔरपल्लवन - कैलाशचंद्रभाटिया/तुमनसिंह, प्रभातप्रकाशन, दिल्ली।